Saturday, August 2, 2014

भगवान पशुपतिनाथ  के दर पर जाने से पहले कम से कम दो फूल पूजा के लिए तो ले जाते प्रधानमंत्री मोदी 

जनहितों को रोंदने वाले रावण जैसे पराक्रमी अजेय भक्तों की लंका का भी दहन खुद हनुमान बनकर करते हैं भगवान शिव


काश भगवान पशुपतिनाथ के दर पर शीश नवाने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अगर दो पूजा के फूल ले कर जाते तो भगवान अवश्य प्रसन्न होते। भले ही मोदी ने भगवान पशुपति नाथ के दर पर पूजा  अर्चना के लिए कई टन चंदन व पूजा के लिए विशेष प्रबंध कर रहे हैं। परन्तु भगवान शिव अपने भक्तों की पूजा पाठ से नहीं अपितु उनके सतकर्मो से ही सदा प्रसन्न होते है। भगवान शिव के दर पर जाने से पहले मोदी अगर अपने शासन के इन दो महीनों में जनहित के विशेष कार्य किये होते तो भगवान शिव अवश्य प्रसन्न होते। न तो मोदी अपने दो महीनों के राज में गौ माता सहित लाखों जीवों की निर्मम हत्या रूकवाते तो भगवान प्रसन्न होते। अगर मोदी मंहगाई से त्राही-त्राही कर रही भारत की गरीब जनता को मंहगाई से मुक्ति दिलाते तो भगवान शिव प्रसन्न होते । । भगवान शिव अपने भक्त मोदी से तब प्रसन्न होते जब प्रधानमंत्री बनते ही मोदी, अंग्रेजों को जाने के 67 साल अंग्रेजी का गुलाम बनाये हुए देश को  अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति देने का ऐतिहासिक निर्णय लेते। वे कभी भारत को अंग्रेजी से मुक्ति दिलाने के लिए संसद की चैखट पर आंदोलनरत भारतीय भाषा आंदोलन व सीसेट रद्द करो आंदोलन की शर्मनाक उपेक्षा नहीं करते। भगवान शिव हमेशा शिवत्व को आत्मसात करके जगत कल्याण के लिए समर्पित रहने वाले भक्त से प्रसन्न रहते हैं और जनहितों को रौंदने वाले भक्तों की पाठ पूजा से भी रूष्ठ हो कर खुद ही दण्ड  देते हैं।
भगवान शिव भी हैरान होगे कि सत्तासीन होने के बाद उसके भक्त को उनके राज में हर दिन दो टके के लिए निर्ममता से कत्ल की जा रही गौ माता सहित  अन्य जीवों की करूण पुकार क्यों नहीं सुनाई दे रही है। क्यों भारतीय संस्कृति  की दुहाई देने वाले मोदी जैसे भक्त की आत्मा देश में बने कत्लगाहों के बंद करने के लिए धिक्कार नहीं रही है। भगवान शिव ने तो सारी सृष्टि के कल्याण के लिए स्वयं विष का पान करके जड़ चेतन की रक्षा कर नीलकण्ठ के रूप में विख्यात रहे। भगवान केदारेश्वर के रूप में देवभूमि उत्तराखण्ड को रौंदने वाले कुशासकों को तांडव दिखा कर व बेनकाब करके सत्तांध धृतराष्ट्रों को आगाह भी करते है।
परन्तु ना जाने प्रधानमंत्री मोदी को इसका भान होना चाहिए कि सारी सृष्टि के जड़ चेतन के परम कल्याणकारी परमेश्वर हैं भगवान शिव शंकर। वह पाठ, पूजा करने से ही नहीं अपितु जगत कल्याण के सत कार्यो से प्रसन्न होते है। पाठ पूजा तो रावण भी बहुत करता था परन्तु जब रावण ने निर्मम  अत्याचार करके जनहितों को रौंदने का काम किया तो भगवान शिव ने स्वयं हनुमान बन कर उसकी सोने की लंका का दहन किया।
वह अपने उस  भक्त से कैसे प्रसन्न हो सकते हैं जिनको उन्होंने अपनी दिव्य कृपा से एक चाय बेचने वाले से आज संसार का सबसे बडे लोकतंत्र का भाग्य विधाता बना दिया है परन्तु देश का भाग्य विधाता बनने के बाद वह भक्त भगवान शिव के दिव्य कल्याण तत्व को भूल कर सत्तामद में ही अपने दायित्व को भूल गया है। भगवान सदाशिव के दर पर अपनी इस भूल के लिए क्षमा याचना करके मोदी देश के सम्मान, जनहितों व प्राणीमात्र की रक्षा करने के दायित्व का निर्वहन करने का संकल्प लें तभी भगवान शिव मोदी से प्रसन्न होंगे।

Tuesday, July 29, 2014

मोदी जी, अंग्रेजी को थोप कर जार्ज पंचम के वंशजों का राज, किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी अब भारत की स्वाभिमानी जनता 

सी सैट के साथ संघ लोकसेवा आयोग की सभी परीक्षाओं व न्यायालय(सर्वोच्च व उच्च) से अंग्रेजी हटा कर भारतीय भाषायें लागू करो


मोदी सरकार ने जितनी ताकत संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में बलात अंग्रेजी थोपने के प्रतीक सी सेट को हटा कर भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग करने वाले छात्रों के आंदोलन को कुचलने व उपेक्षा करने में लगाया, अगर इसका एकांश संघ लोकसेवा आयोग में अंग्रेजी की गुलामी थोपने वाले संघ लोकसेवा आयोग के मठाधीशों को लोकशाही का सबक सिखाने में लगाती तो यह समस्या एक दिन में सुलझ जाती। प्रशासन ने पुलिसिया ताकत से अनशनकारी छात्रों को अस्पताल में भर्ती कर दिया।
मोदी सरकार इस भ्रम में न रहे कि संसद की चैखट पर पिछले 15 महीनों से चल रहे भारतीय भाषा आंदोलन के शांतिपूर्ण आंदोलन की शर्मनाक उपेक्षा करके, मुखर्जी नगर में आंदोलनरत छात्रों के आंदोलन को पुलिसिया दमन से रौंदने व अनशनकारी छात्रों को जबरन अस्पताल में भर्ती करके देश की आजादी के इस असली जंग को रोकने में सफल होगी। देश की आजादी को अब और समय तक  अंग्रेजी का गुलाम बना कर बंधक नहीं बनाया जा सकता। देश के हुक्मरानों ने संघ लोकसेवा आयोग व न्यायालय सहित पूरी व्यवस्था को अंग्रेजी के शिकंजे में जकड़ कर देश की आजादी को बंधक बना कर देश में आजादी के 67 साल बाद भी फिरंगी सम्राज्ञी का ही राज अंग्रेजी भाषा को थोप कर शर्मनाक ढंग से थोप रखा है। सिविल सेवा परीक्षा  में जिस सी सैट को हटाने की मांग छात्र कर रहे हैं वह तो इस शिकंजे का एक हिस्सा है। संघ लोकसेवा आयोग, सिविल सेवा परीक्षा की तरह एक दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए परीक्षायें आयोजित करके देश के भाग्य विधाता व नीति निर्माताओं का चयन करता है। इसमें वह षडयंत्र करता है कि इन पूरी परीक्षाओं में केवल अंग्रेजी भाषा के गुलामों का ही वर्चस्व देश की पूरी व्यवस्था पर रहे। भूल कर भी भारतीय संस्कृति व आम जनता के हितों की बात करने वाला एक भी आदमी इस व्यवस्था में न घुस आये। इसी लिए अंग्रेजी का बर्चस्व बना कर देश की जनता को अंग्रेजी पढ़ने व भारतीय भाषाओं की उपेक्षा करने के लिए मजबूर करने का षडयंत्र रचा हुआ है।
भारत सरकार ने जितनी शक्ति व हटधर्मिता देश में अंग्रेजी का गुलाम बनाये रखने के लिए आजादी के 67 साल में किया। अगर उसका एकांश भी देश में भारतीय भाषाओं को लागू करने में लगाती तो आज भारत विश्व की महाशक्ति व जगत गुरू कबका बन जाता। अंग्रेजी भाषा का गुलाम बनने के बाद भारत में देशद्रोहियों, भ्रष्टाचारियों व बिट्रेन की सम्राज्ञी के गुलामों की फौज, भारत की संस्कृति, स्वाभिमान, नाम, भाशा व इतिहास को रौंदने में लगी है।
अंग्रेजी की गुलामी से देश को मुक्त करने व भारतीय भाषाओं को पूरी व्यवस्था में लागू करने की मांग को लेकर 1988 से संघ लोकसेवा आयोग से लेकर संसद की चैखट जंतर मंतर पर आंदोलन कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चोहान व महासचिव देवसिंह रावत ने दो टूक शब्दों में सरकार को आगाह किया कि देश की स्वाभिमानी जनता अब अंग्रेजी की आड में जार्ज पंचम के वंशजों का राज भारत किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी। वह संघ लोक सेवा आयोग व न्यायालय सहित पूरी व्यवस्था में एक पल के लिए अंग्रेजी की गुलामी किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी। यदि देश के हुक्मरानों ने आजादी के पहले दिन से ही देश में अंग्रेजी थोपने के बजाय भारतीय भाषाओं में राजकाज चलाया होता तो भारत आज न केवल ज्ञान विज्ञान में जगतगुरू होता अपितु विकास व सामरिक दृष्टि से भी विश्व की महाशक्ति होती। भारत को असली आजादी दिलाने के संकल्प को साकार करने के लिए आज जहां एक तरफ संसद की चैखट पर भारतीय भाषा आंदोलन के समर्पित आंदोलनकारी धरना दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के मुखर्जी नगर में छात्र प्रचण्ड आंदोलन करके देश में आजादी के नाम पर थोपी गयी अंग्रेजी की गुलामी के कलंक को देश के माथे से सदा से मिटा कर मूक बनाये गये देश को अपनी भारतीय भाषाये दिलाने के लिए निर्णायक आंदोलन कर रहे है।  देश की जागरूक जनता भी अब अंग्रेजी की गुलामी की बेडियों को तोड़ने के लिए मन बना रही है। 

Sunday, July 13, 2014


देशद्रोहियों अंग्रेजी तालिबानों पर क्यों अंकुश नहीं लगा रही है अदालत व सरकार

देश की संस्कृति, गणवेश व भाषा को भारत में अपमान करने वाले अंग्रेजी तालिबान रौंद रहे हैं भारत की लोकशाही व सम्मान

भारतीय गणवेश धोती पहन कर तमिलनाडू क्रिकेट क्लब में जाने पर मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रोकने की धृष्ठता करने वाले क्लब की मान्यता समाप्त कर इसके पदाधिकारियों की सम्पति जब्त करके देश निकाला करे सरकार 


एक तरफ देश का सर्वोच्च न्यायालय सहित देश की अदालतें, मानवाधिकार संगठन व सरकारें देश के अंदर जातिवादी व धार्मिक फतवों को गैरकानूनी बता कर कड़ा अंकुश लगाती है, परन्तु आजादी के 67 साल बाद भी देश के सर्वोच्च न्यायालय-उच्च न्यायालयों, संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी की बलात गुलामी व कई अंग्रेजों के राज में स्थापित फिरंगी संस्कृति के पोषक क्लबों में भारतीय गणवेश पर प्रतिबंध लगाने का राष्ट्रद्रोही, मानवाधिकार व लोकशाही को रौंदने का धृर्णित तालिबानी कृत्यों पर प्रतिबंद्ध लगाना तो रहा दूर उफ तक नहीं कर रहा है। 
इससे बडा देश का और क्या दुर्भाग्य व अपमान क्या होगा कि आजादी के 67 साल बाद भी देश में ही भारतीय गणवेश पहने व भारतीय भाषा बोलने पर न केवल प्रतिबंध लगाने की धृष्ठता की जाती। अपितु अपमानित करके बाहर भी किया जाता है। भारतीय गणवेश पहने पर पिछले दिनों मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति डी. हरिपरंथम को इस लिए तमिलनाडु क्रिकेट संघ के क्लब में नहीं जाने दिया क्योंकि न्यायमूर्ति ने भारतीय गणवेश धोती पहनी थी। धोती कुत्र्ते पहन कर तमिलनाडू क्रिकेट क्लब में जैसे ही न्यायमूर्ति पंहुचे तो क्लब के कर्मचारियों ने उनको क्लब का गणवेश नियम का पाठ पढ़ाते हुए उनको क्लब में जाने से रोका। जबकि न्यायमूर्ति ने का परिचय जानने के बाबजूद भी उनसे ऐसी अपमानजनक धृष्ठता की गयी। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति डी. हरिपरंथम हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस टी.एस. अरुणाचलम द्वारा आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में हिस्सा लेने के लिए क्लब आए थे। 
इस प्रकरण की तरह मेरा भी अपमान उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया तिवारी के सत्तासीन समारोह के बाद जब मैं अपने उद्यमी मित्र केसी पाण्डे, पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सुनीता काण्ड पाल व कांग्रेसी नेता दुर्गा पाठक के साथ दून क्लब में मेरे द्वारा कुत्र्ता पजामा पहनने पर न केवल आपत्ति प्रकट की थी अपितु हमको इस क्लब से खाना खाने के बाद हटने को मजबूर किया। इसके बाद मैने इसका प्यारा उत्तराखण्ड में इस पर कडी भत्र्सना युक्त सम्पादकीय लिखा थ, जिससे क्लब वालों ने मेरे मित्र से अपनी नाराजगी प्रकट की थी। 
देश की आजादी को 15 अगस्त 1947 से अंग्रेजी की गुलामी को बलात थोप कर बंधक बनाने के शर्मनाक देशद्रोही षडयंत्र के खिलाफ भारतीय भाषा आंदोलन ने 1988 से खुला आंदोलन छेडा हुआ है। इसी के तहत भारतीय भाषा आंदोलन देश से इसी अंग्रेजी गुलामी को उखाड़ फेंकने के लिए संसद की चैखट-राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व महासचिव देवसिंह रावत सहित तमाम देशभक्तों ने 21 अप्रैल 2013 से अखण्ड धरना दे रखा है। 
इसी गुलामी के प्रतीक संघ लोकसेवा आयोग की सिविल सेवा की परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता(सिसेट थोपकर) भारतीय भाषाई छात्रों को देश के भाग्य विधाता बनने से रौकने का राष्ट्रघाति षडयंत्र रचा हुआ है। इसके खिलाफ दिल्ली में सिविल सेवा की परीक्षाओं की तैयारी में जुटे देशभर के भारतीय भाषाई हजारों छात्र राष्ट्रीय अधिकार मंच के बैनर तले पवन कुमार पाण्डेय व निलोत्पल के नेतृत्व में व्यापक जनांदोलन छेडे हुए है। भारतीय भाषा आंदोलन के 1988 से 2014 तक के ऐतिहासिक संघर्ष में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह, पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ व अटल के साथ चार दर्जन नेता धरने से संसद पर आंदोलित रह कर मात्र संकल्प पारित करा पाये। वहीं मुखर्जी नगर में सिसेट में अंग्रेजी की अनिवार्यता के विरोध में आंदोलनरत हजारों छात्रों के समर्थन में कई दलों के सांसद व नेता सम्मलित हो चूके हैं परन्तु ढाक के तीन पात। 
देश की न्यायपालिका, संघलोकसेवा आयोग में जहां फिरंगी भाषा अंग्रेजी को बलात थोपा गया है वहीं भारतीय भाषाओं का शर्मनाक उपेक्षा की गयी है। इन अंग्रेजी तालीबानों का इतना दुशाहस हो गया है कि आजाद भारत में भारतीय भाषाओं को न केवल रौंद रहे हैं अपितु अब उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों को भी भारतीय गणवेश पहने पर अपमानित कर भारतीय की सीमा में बने क्लबों में प्रवेश नहीं करने दे रहे है। इस शर्मनाक प्रकरणों पर भी न्यायालय व मोदी के साथ जयललिता सरकार ने शर्मनाक चुप्पी साधी है। 
देश की सरकारें अभी तक विरोधी व लोकशाही को रौंदने वाले तालीबानी फतवे पर न तो न्यायालय ही स्वयं विवेक से अंकुश लगाता है और नहीं देश में तालिबानी फतवों पर तो न्यायालय जो हादसा 14 साल पहले मेरे साथ देहरादून में कुत्र्ता पजामा पहने पर वहां के अंग्रेजा क्लब ने किया, ऐसा ही अपमान इसी महीने मद्रा्रस उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के साथ मद्रास में किया गया। कारण एक ही दोनों जगह एक ही कारण बताया गया कि गणवेश नियम के अनुसार क्लब में प्रवेश वर्जित है का फतवा सुनाया गया। इस फतवे के अनुसार इन क्लबों में भारतीय गणेवशधारियों को प्रवेश से वंचित किया जाता और अंग्रेजी गणवेश का लालकालीन बिछा कर स्वागत किया जाता। 
अब 12-13 साल बाद ठीक ऐसी घटना मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के साथ तमिलनाडू में की गयी। अगर आजादी के बाद देश की सरकारें इस प्रकार के तमाम देश की भाषा, गणवेश व खानपान पर प्रतिबंध लगाने का दुशाहस नहीं करता। ऐसी घटनाओं से न केवल न्यायमूर्ति डी हरिपरंथम व मेरा ही अपमान नहीं किया गया अपितु यह सारे राष्ट्र की लोकशाही, मानवाधिकार व देश के सम्मान का शर्मनाक अपमान है। अगर इस घटना पर न्यायालय, मोदी सरकार व जयललिता सरकार मूक रहती है तो यह देश के शहीदों की शहादत व राष्ट्र का घोर अपमान करना ही होगा। शेष श्रीकृष्ण, हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

Wednesday, June 25, 2014

-देश विदेश में भारतीय भाषाओं में हुंकार भरने वाले प्रधानमंत्री मोदी को ही ठेगा दिखा कर प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं छोड़ रहा है अंग्रेजी की गुलामी 


-देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति करने व भारतीय भाषाओं  को सम्मान करने वाले ज्ञापन का जवाब भी अंग्रेजी में देता है प्रधानमंत्री मोदी का कार्यालय 

भले ही प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी अपने पूर्ववती शासकों की तरह अंग्रेजी की गुलामी न ढोने का शंखनाद करते हुए देश विदेश में भारतीय भाषा में ही बोलने की हुंकार भर रहे हों, परन्तु उनकी नाक के नीचे उनका प्रधानमंत्री कार्यालय उनके आदर्शो की निर्मम हत्या करके स्वतंत्र भारत में आजादी के 67 साल बाद भी अंग्रेजी के गुलामी का शर्मनाक कलंक भारत के माथे में लगाने की राष्ट्रद्रोही कृत्य कर रहा है।  
ऐसा ही शर्मनाक कृत्य प्रधानमंत्री कार्यालय ने ‘दे
 से अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्ति व भारतीय भाषाओं का लागू करने’ की मांग को लेकर संसद की चैखट -राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर 21 अप्रैल 2013 से भाशा पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व महासचिव देवसिंह रावत के नेतृत्व में अखण्ड धरना दे रहे भारतीय भाषा आंदोलन के 30 मई 2014 को प्रधानमंत्री मोदी को दिये गये भारतीय भाशा हिन्दी में लिखे इस आशय के ज्ञापन के उत्तर में किया। 
भाषा आंदोलन के महासचिव देवसिंह रावत ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय के सेक्सन अधिकारी सुधांसु शेखर मिश्रा के हस्ताक्षरित अंग्रेजी में लिखा पावती पत्र 24 जून 2014 को जंतर मंतर धरना स्थल पर भाषा आंदोलन के धरना प्रभारी महेशकांत पाठक को मिला। यह पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय ने 
SECRETARY, D/O PERSONNEL& TRAINING, M/O PERS.P.G.&PENSIONS  dks PMOID NO.1/3/2014-PMP2/47890 DATED 16-06-2014 से भेजा व इसकी एक प्रति .
 ैीSh- BALDEV VANSHI& OTHERS
BHARTIYA BHASHA
 AANDOLAN, DHARNA STHAL,
JANTAR MANTAR. DELHI-01 
को भेजी। यह प्रति मिलने पर भारतीय भाषा आंदोलन में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा भारतीय भाषाओं के इस अपमान की कडी भत्र्सना की गयी। भाशा आंदोलन के महासचिव की अध्यक्षता में हुई आपात बैठक में भारतीय भाषा आंदोलन के धरना प्रभारी महेशकांत पाठक, वरिष्ठ साहित्यकार व संत प्रमुख वीरेन्द्रनाथ वाजपेयी, वरिश्ठ समाजसेवी ताराचंद गौतम, जाट समाज के वरिष्ठ नेता सहदेव पुनिया, अनंतकांत मिश्र, कमल किशोर नौटियाल, मन्नु कुमार, श्रीकृष्ण तिवारी, रमाषकर औझा, चैधरी अजित त्यागी, मोहम्मद सैफी व मोहम्मद आजाद सहित प्रमुख लोग उपस्थित थे। बैठक में इस बात पर गहरा क्षोभ प्रकट किया गया कि एक तरफ प्रधानमंत्री देश विदेश में अंग्रेजी की गुलामी को न ढोते हुए भारतीय भाषा में भारत का सम्मान बढ़ा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उनकी नाक के नीचे उनका प्रधानमंत्री कार्यालय ही भारतीय भाषाओं के सम्मान के लिए भारतीय भाषा में लिखे गये पत्र का जवाब ही अंग्रेजी में दे कर प्रधानमंत्री के आदर्शो का निर्मम हत्या कर रहा है और देश की आजादी, स्वाभिमान व लोकशाही का घोर अपमान कर रहा है। 
भाषा आंदोलन के महासचिव देवसिंह रावत ने क्षोभ प्रकट किया कि जिस आंदोलन में ज्ञानी जैलसिंह, अटल बिहारी वाजपेयी व विष्वनाथ प्रताप सिंह सहित दर्जनों षीर्ष नेताओं ने भाग लिया हो उस आंदोलन का अपमान देश के हुक्मरान व नौकरशाह देश में अंग्रेजी को बनाये रख कर कर रहे है। श्री रावत ने कहा कि जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी व उनके गृहमंत्री राजकाज व बोल चाल में भारतीय भाषा का प्राथमिकता देने की बात कह रहे हैं, उसका प्रभाव नौकरशाही पर रत्तीभर नहीं है इसका जीता जागता सबूत भाषा आंदोलन को प्रेषित प्रधानमंत्री कार्यालय यह पत्र है। भाषा आंदोलन को आशा थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय मोदी के शासन में आने से सुधर गया होगा परन्तु जिस प्रकार का पत्र भाषा आंदोलन को भेजा गया उससे साफ हो गया है कि मनमोहन सिंह के बदलने के बाद मोदी के आने पर भी प्रधानमंत्री कार्यालय मोदी के राश्ट्रवाद को ठेगा बताने के लिए अंग्रेजी की गुलामी को किसी भी कीमत पर नहीं छोडना चाहता है। यही नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय को जो ज्ञापन भाषा आंदोलन ने दिया उसको किस सम्बंध विभाग को भेजना है इसका भी भान तक नहीं है।  इससे पहले मनमोहनी सरकार में भी प्रधानमंत्री कार्यालय इसी प्रकार की गुलाम परस्ती भाषा आंदोलन को प्रेषित अपने पत्रों में करता रहा। अंतर इतना है मनमोहन के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय ने भाषा आंदोलन के इसी आशय के ज्ञापन को कार्यवाही के लिए दिल्ली पुलिस कमिशनर को प्रेषित किया तो कभी खान मंत्रालय को, अब मोदी के कार्यकाल में इसे पेंशन व टेªेनिग विभाग को अग्रमी कार्यवाही के लिए प्रेषित किया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय के इस अदने से पत्र से साफ हो गया कि निजाम भले बदल भी जाय परन्तु देश की नौकरशाही किसी भी कीमत पर अंग्रेजी की गुलामी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे गुलामों पर कैसे अंकुश लगाया जाय यह फेसला प्रधानमंत्री मोदी ने करना है। 

Thursday, May 29, 2014



राष्ट्रद्रोही व अलगाववादी अनुच्छेद 370 को कश्मीर से अविलम्ब हटाये मोदी सरकार 


-देवसिंह रावत 


भारत में कश्मीर का विलय 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के राजा हरिसिंह द्वारा किया गया। उस समय किसी प्रकार इस आतंकियों व अलगाववाद को पोषण करके कश्मीर को भारत से दूर करने वाले अनुच्छेद का कहीं अस्तित्व नहीं था।  वहीं कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाला राष्ट्रद्रोही अनुच्छेद 370,  26 जनवरी 1950 को जोड़ा गया। इस लिए इस धारा को हटाने पर कश्मीर को भारत से अलग होने की बात कहने वाले न केवल अज्ञानी ही नहीं अपितु देशद्रोहियों को संरक्षण देने वाले भी है। क्योंकि जम्मू कश्मीर राज्य के संविधान की धारा 3 के अनुसार विधानसभा को कश्मीर के भारत में विलय के बारे में संशोधन करने का कोई अधिकार ही नहीं है। 
हकीकत यह है कि इसी धारा 370 के कारण ही कश्मीर में भारत के खिलाफ निरंतर अलगाववाद बढ़ रहा है। इस राष्ट्रद्रोही धारा को हटाने पर कश्मीर को भारत से अलग करने का दुशाहस करने वाले कश्मीर के मुख्यमंत्री सहित तमाम विरोधियों को कडा सबक सिखाते हुए मोदी सरकार 64 साल से देश के स्वाभिमान को रौंदने वाला अनुच्छेद 370 को तुरंत हटाया जाय। इस देशद्रोही अनुच्छेद के कारण ही कश्मीर में आतंकवादी व अलगाववादी प्रवृतियों को संरक्षण मिल रहा है। 

कश्मीर में अनुच्छेद 370 से अलगाववाद किस प्रकार से फैल रहा है इसके लिए जानिये अनुच्छेद 370 से कश्मीर को क्या विशेषाधिकार मिला है जो उसे भारत से अलगाववाद पैदा करने में शर्मनाक कार्य करता है। 
- इस अनुच्छेद 370 के कारण ही जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है ।
-भारत के उच्चतम न्यायलय के आदेश जम्मू - कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं ।
भारत की संसद को जम्मू - कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यंत सीमित क्षेत्र (रक्षा, विदेश व संचार) में कानून बना सकती है ।
-धारा 370 की वजह से कश्मीर में सूचना का अधिकार  लागु नहीं है। आरटीई लागू नहीं है। यही नहीं कैग भी लागू नहीं होता । भारत का कोई भी कानून लागु नहीं होता ।
-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है ।
-इस राष्ट्रद्रोही अनुच्छेद के कारण कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी । इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू - कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी । वहीं दूसरी तरफ यहां की महिलाओं को पाकिस्तानियों से शादी करने पर प्रोत्साहन दिया जाता और भारतीयों से शादी करने पर सम्पति से वंचित करके  उसकी नागरिकता को रद्द कर दण्डित किया जाता है।   धारा 370 की वजह से ही पाकिस्तानियो को भी भारतीय नागरिकता मिल जाता है । इसके लिए पाकिस्तानियो को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है ।
-कश्मीर में अल्पसंख्यको व हिन्दू- सिख  को 16 प्रतिशत आरक्षण  नहीं मिलता ।
-धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते है ।

-जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है । जबकी भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5
वर्ष का होता है ।
-जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है ।

-कश्मीर में महिलाआंे के हितों कों संरक्षण देने वाले भारतीय कानून लागू नहीं है । कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं

उपरोक्त प्रावधानों को जानने के बाद देश के हर राष्ट्रभक्त के दिल व दिमाग में एक ही प्रश्न बडी हैरानी के साथ उठता होगा कि इस देशद्रोही अनुच्छेद को 64 साल तक देश की सत्ता में काबिज रही तमाम दलों की सरकारों ने एक पल के लिए भी देश से हटाने का कार्य क्यों नहीं किया।

अब जब मोदी सरकार ने सत्तासीन होने के बाद ही इस मामले को छूने का प्रयास भी किया तो जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला सहित तमाम राजनैतिक दल ऐसा विधवा विलाप कर रहे हैं मानों अनुच्छेद 370 कोई राष्ट्रवादी स्तम्भ हो। सबसे हैरानी की बात यह है कि बिना इसके प्रावधानों को जाने या जानने के बाद भी देश का तथाकथित निहित स्वार्थी छदम् बुद्धिजीवी तत्व धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश में ऐसी राष्ट्रद्रोही अनुच्छेद पर प्रश्न उठाने को भी देश तोड़ने की हरकत मान रहे है।प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए कि इन देश की छाती पर राष्ट्रद्रोही तत्वों को संरक्षण देने वाले अनुच्छेद को तत्काल हटा कर इसका विरोध करने वालों से शक्ति से कुचल कर राष्ट्र की रक्षा करके श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान की लाज  रखी जाय। 

Thursday, February 10, 2011

अटल सरकार ने पाक अध्किृत कश्मीर में क्यों नहीं फहराया तिरंगा


अटल सरकार ने पाक अध्किृत कश्मीर में क्यों नहीं फहराया तिरंगा
 लाल चैक पर तिरंगा पफेहराने का प्रकरण पर
भाजपा ही नहीं केन्द्र व जम्मू कश्मीर सरकार दोषी
मेरा स्पष्ट मानना है कि अगर भाजपा गठबंध्न की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पाक अध्किृत कश्मीर में तिरंगा पफेहराने का काम किया होता तो उसको आज भारतीय भू भाग वाले कश्मीर में तिरंगा पफेहराने के लिए इतना जिद्दोजहद नहीं छेड़ना पड़ता। इसके  लिए देश की जनता से भाजपा को मापफी मांगनी चाहिए। क्योंकि देश की जनता इस मुद्दे पर पहले ही कांग्रेस को गुनाहगार मानती है। जब भाजपा के हाथ में देश की बागडोर थी तो उसने क्यों पाक अध्किृत कश्मीर को हासिल नहीं किया। क्यों धरा 370 को समाप्त नहीं किया। क्यों कश्मीर में अलगाववादी केन्द्र तहस नहस किये। अब सत्ता से बाहर आने के बाद मात्रा अपनी राजनीति चमकाने के लिए तिरंगा श्रीनगर में पफेहराने की ऐलान करने से देश को क्या हासिल होगा?
यह देश का दुर्भाग्य है कि अपने ही देश में देश के राष्ट्रीय झण्डे को देश में ही पफेहराने के नाम पर जो गंदी राजनीति हुई उससे देश का  जो अपमान देश विदेश में हो रहा है उसका भान न तो श्रीनगर के लाल चैक में 26 जनवरी के दिन झण्डा पफेहरान के लिए आंदोलनरत भाजपा का ेथा व नहीं देश की कांग्रेस गठबंध्न वाली सप्रंग सरकार को। जम्मू कश्मीर की सरकार से तो राष्ट्र के सम्मान की आश करना भी ऐसे में नादानी ही होगी। यह सब देश के सम्मान की रक्षा के लिए नहीं अपितु अपनी राजनीतिक रोटियां सैकने के लिए देश के सम्मान से खिलवाड़ किया जा रहा है। देश के सम्मान के प्रतीक तिरंगे झण्डे को पफहराने से रोकने के लिए जहां दलगत विरोध् में अंध्े हो कर केन्द्र व प्रदेश सरकार ने पूरी ताकत झोंकी, वहीं भाजपा ने इस बेमोसम के इस झण्डा राग छेड़ कर एक प्रकार से राष्ट्रीय तिरंगे के अपमान में भागीदार बनी। हजारों की संख्या में सुरक्षा बलों व भाजपा के हजारों कार्यकत्र्ता आमने सामने रहे। देश का कितना आर्थिक व सम्मान की हानि हुई इसका भान न तो भाजपा को रहा व नहीं कांग्रेस को। 26 जनवरी पर इस हाय तौबा के अलावा राष्ट्र को कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
जहां तक भाजपा के युवा मोर्चे द्वारा 26 जनवरी जम्मू कश्मीर की राजधनी श्रीनगर के लाल चैक पर देश का राष्ट्रीय झण्डा पफेहराने के ऐलान इस अभियान के औचित्य का सवाल है, उसका जवाब देश की जनता के साथ साथ बिहार के मुख्यमंत्राी नीतीश कुमार ने सही शब्दों में दिया कि इसका इस समय कोई औचित्य ही नही हे। ऐसा नहीं कि श्रीनगर में 26 जनवरी के दिन तिरंगा नहीं लहराया जाता। श्रीनगर में हर साल पूरी शान से तिरंगा पफेहराया जाता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आज देश में चारों तरपफ मंहगाई व आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार से त्राही -त्राही मची है तो ऐसे समय में वे केन्द्र सरकार का दिल्ली में पुरजोर विरोध् करने के बजाय आतंकवाद ग्रसित कश्मीर में अपनी पूरी ताकत लगा कर क्या हासिल करना चाहते।
श्रीनगर में झण्डा पफेहराने के लिए अभियान चलाने वाली भाजपा से देश की जनता का एक ही सवाल है कि भाजपा को लाल चैक पर झण्डा पफेहराने की सुध् तब क्यों नहीं आयी जब उसकी सरकार केन्द्र में आसीन थी। तब उसकी सरकार को न तो श्रीनगर में सुरक्षित झण्डा पफेहराने की सुध् रही व नहीं देश की संसद पर हमला करने वाले आतंकियों के आका पाक व अमेरिका को करारा सबक सिखाने की ही सुध् रही। भाजपा अगर अपने शासनकाल में श्रीनगर कश्मीर में नहीं पाक द्वारा कब्जाये कश्मीर में झण्डा पफेहराने का अभियान अपने शासन काल के दोरान छेडती तो पूरे देश की जनता उनका साथ देती। अपने शासनकाल में तो भाजपा कारगिल ही नहीं संसद की सुरक्षा तो समय पर नहीं कर पायी। अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में अमेरिकापरस्ती नीतियों के चलते उनको देश के सम्मान का ध्यान ही कहां रहा। यहां तक की उनके रक्षा मंत्राी जार्ज पफर्नाडिस के कपड़े तक अमेरिका में जांच के नाम पर उतराये गये परन्तु क्या मजाल की वाजपेयी सरकार ने उपफ तक की हो। तब न तो भाजपा को धरा 370 के बारे में याद रही व नहीं समान नागरिक संहिता के बारे में ही याद रहा। भगवान राम तो उनको सत्तासीन होते ही भूल गये। हिन्दी हिन्दु हिन्दुस्तान की भी याद उनको सत्तासीन होने के बाद नहीं रही। भारतीय भाषाओं के लिए संघर्ष करने वाले पुरोधओं को इन्हीं राष्ट्रवादियों के राज में खदेड़ा गया।
भाजपा का सबसे बड़ा शर्मनाक प्रवृति यही रही कि जब भी वह विपक्ष में रहती है तो उसे राष्ट्रवाद याद रहता है। सत्ता में आते ही वह सब कुछ भुल कर कांग्रेस की तर्ज पर देश के संसाध्नों की बंदरबांट करने में जुट जाती है। पूरे देश में रथ यात्रा जिस भगवान राम के मंदिर के निर्माण के नाम पर भाजपा ने चलायी उसको भी सत्ता में आते ही भुला दिया गया। जहां शहीद हुए मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है का नारा कह कर समान नागरिक संहिता लागू करने के सब्जबाग जनता को दिखाने वाले भाजपाई सत्ता पाते ही सब कुछ भुल गये। उनको केवल याद रहा तो लाभप्रद नवरत्न उद्यमों को औनेपौने दामों पर अपने चेहतों को निजीकरण के नाम पर देना।
सुशासन व भ्रष्टाचार रहित शासन देने का भाजपा का मुखोटा आज देश की जनता के सामने कांग्रेस की तरह ही बेनकाब हो चूका है। आज भाजपा की उत्तराखण्ड की सरकार के साथ साथ कर्नाटक की सरकार के कारनामें भले ही भाजपा के नेताओं को दिखाई नहीं दे रहे हों परन्तु देश की जागरूक जनता इनके रामराज्य व सुशासन का असली चेहरा देख कर हैरान है। कांग्रेस को बेनकाब होने में दशकों लगे परन्तु भाजपा तो सत्ता के चंद सालों की गलबहियों में पूरी तरह बेनकाब हो गयी। जनता वायदों पर नहीं करनी पर विश्वास करती है।
केन्द्र सरकार व जम्मू कश्मीर सरकार ने भाजपा के इस अभियान को रौकने के लिए जो नाहक कदम उठाये उससे भी देश का अपमान हुआ। इनके नेताओं को सुरक्षा बलों की सुरक्षा में सीध्े लालचैक पर ले जाया जाता और वहां इनसे तिरंगा लहराया जाता या खुद प्रशासन इनसे पहले तिरंगा लालचैक पर पफेहरा देता। भाजपा के अब तक के कार्यकाल से सापफ नजर आता है कि उनको राष्ट्रवाद से नहीं अपनी राजनीति चमकाने से है। भाजपा को एक बात समझ लेनी चाहिए कि अगर उन्होंने केन्द्र में सत्ता में रहते हुए पाक अध्किृत कश्मीर में भारतीय झण्डा पफेहराने का ऐतिहासिक कार्य किया होता तो आज उनको भारतीय श्रीनगर में झण्डा पफेहराने के लिए आंदोलन चलाने के लिए इतना जैहाद नहीं छेडना पड़ता। कुल मिला कर देश का दुर्भाग्य यही है कि यहां की राजनैतिक दलों को देश व देश की जनता की सुध् केवल सत्ता से बाहर रहने पर ही आती है। सत्ता में रहते हुए इनको न तो देश की भान रहती है व नहीं देश की जनता का। वे सब मनमोहन व अटल की तरह सत्तालोलुपता में इतने अंध्े हो जाते हैं कि उनको अमेरिका के अलावा भारत कहीं दिखाई तक नहीं देता। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ¬ तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।