Tuesday, July 29, 2014

मोदी जी, अंग्रेजी को थोप कर जार्ज पंचम के वंशजों का राज, किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी अब भारत की स्वाभिमानी जनता 

सी सैट के साथ संघ लोकसेवा आयोग की सभी परीक्षाओं व न्यायालय(सर्वोच्च व उच्च) से अंग्रेजी हटा कर भारतीय भाषायें लागू करो


मोदी सरकार ने जितनी ताकत संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में बलात अंग्रेजी थोपने के प्रतीक सी सेट को हटा कर भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग करने वाले छात्रों के आंदोलन को कुचलने व उपेक्षा करने में लगाया, अगर इसका एकांश संघ लोकसेवा आयोग में अंग्रेजी की गुलामी थोपने वाले संघ लोकसेवा आयोग के मठाधीशों को लोकशाही का सबक सिखाने में लगाती तो यह समस्या एक दिन में सुलझ जाती। प्रशासन ने पुलिसिया ताकत से अनशनकारी छात्रों को अस्पताल में भर्ती कर दिया।
मोदी सरकार इस भ्रम में न रहे कि संसद की चैखट पर पिछले 15 महीनों से चल रहे भारतीय भाषा आंदोलन के शांतिपूर्ण आंदोलन की शर्मनाक उपेक्षा करके, मुखर्जी नगर में आंदोलनरत छात्रों के आंदोलन को पुलिसिया दमन से रौंदने व अनशनकारी छात्रों को जबरन अस्पताल में भर्ती करके देश की आजादी के इस असली जंग को रोकने में सफल होगी। देश की आजादी को अब और समय तक  अंग्रेजी का गुलाम बना कर बंधक नहीं बनाया जा सकता। देश के हुक्मरानों ने संघ लोकसेवा आयोग व न्यायालय सहित पूरी व्यवस्था को अंग्रेजी के शिकंजे में जकड़ कर देश की आजादी को बंधक बना कर देश में आजादी के 67 साल बाद भी फिरंगी सम्राज्ञी का ही राज अंग्रेजी भाषा को थोप कर शर्मनाक ढंग से थोप रखा है। सिविल सेवा परीक्षा  में जिस सी सैट को हटाने की मांग छात्र कर रहे हैं वह तो इस शिकंजे का एक हिस्सा है। संघ लोकसेवा आयोग, सिविल सेवा परीक्षा की तरह एक दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए परीक्षायें आयोजित करके देश के भाग्य विधाता व नीति निर्माताओं का चयन करता है। इसमें वह षडयंत्र करता है कि इन पूरी परीक्षाओं में केवल अंग्रेजी भाषा के गुलामों का ही वर्चस्व देश की पूरी व्यवस्था पर रहे। भूल कर भी भारतीय संस्कृति व आम जनता के हितों की बात करने वाला एक भी आदमी इस व्यवस्था में न घुस आये। इसी लिए अंग्रेजी का बर्चस्व बना कर देश की जनता को अंग्रेजी पढ़ने व भारतीय भाषाओं की उपेक्षा करने के लिए मजबूर करने का षडयंत्र रचा हुआ है।
भारत सरकार ने जितनी शक्ति व हटधर्मिता देश में अंग्रेजी का गुलाम बनाये रखने के लिए आजादी के 67 साल में किया। अगर उसका एकांश भी देश में भारतीय भाषाओं को लागू करने में लगाती तो आज भारत विश्व की महाशक्ति व जगत गुरू कबका बन जाता। अंग्रेजी भाषा का गुलाम बनने के बाद भारत में देशद्रोहियों, भ्रष्टाचारियों व बिट्रेन की सम्राज्ञी के गुलामों की फौज, भारत की संस्कृति, स्वाभिमान, नाम, भाशा व इतिहास को रौंदने में लगी है।
अंग्रेजी की गुलामी से देश को मुक्त करने व भारतीय भाषाओं को पूरी व्यवस्था में लागू करने की मांग को लेकर 1988 से संघ लोकसेवा आयोग से लेकर संसद की चैखट जंतर मंतर पर आंदोलन कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चोहान व महासचिव देवसिंह रावत ने दो टूक शब्दों में सरकार को आगाह किया कि देश की स्वाभिमानी जनता अब अंग्रेजी की आड में जार्ज पंचम के वंशजों का राज भारत किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी। वह संघ लोक सेवा आयोग व न्यायालय सहित पूरी व्यवस्था में एक पल के लिए अंग्रेजी की गुलामी किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी। यदि देश के हुक्मरानों ने आजादी के पहले दिन से ही देश में अंग्रेजी थोपने के बजाय भारतीय भाषाओं में राजकाज चलाया होता तो भारत आज न केवल ज्ञान विज्ञान में जगतगुरू होता अपितु विकास व सामरिक दृष्टि से भी विश्व की महाशक्ति होती। भारत को असली आजादी दिलाने के संकल्प को साकार करने के लिए आज जहां एक तरफ संसद की चैखट पर भारतीय भाषा आंदोलन के समर्पित आंदोलनकारी धरना दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के मुखर्जी नगर में छात्र प्रचण्ड आंदोलन करके देश में आजादी के नाम पर थोपी गयी अंग्रेजी की गुलामी के कलंक को देश के माथे से सदा से मिटा कर मूक बनाये गये देश को अपनी भारतीय भाषाये दिलाने के लिए निर्णायक आंदोलन कर रहे है।  देश की जागरूक जनता भी अब अंग्रेजी की गुलामी की बेडियों को तोड़ने के लिए मन बना रही है। 

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