Wednesday, June 25, 2014

-देश विदेश में भारतीय भाषाओं में हुंकार भरने वाले प्रधानमंत्री मोदी को ही ठेगा दिखा कर प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं छोड़ रहा है अंग्रेजी की गुलामी 


-देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति करने व भारतीय भाषाओं  को सम्मान करने वाले ज्ञापन का जवाब भी अंग्रेजी में देता है प्रधानमंत्री मोदी का कार्यालय 

भले ही प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी अपने पूर्ववती शासकों की तरह अंग्रेजी की गुलामी न ढोने का शंखनाद करते हुए देश विदेश में भारतीय भाषा में ही बोलने की हुंकार भर रहे हों, परन्तु उनकी नाक के नीचे उनका प्रधानमंत्री कार्यालय उनके आदर्शो की निर्मम हत्या करके स्वतंत्र भारत में आजादी के 67 साल बाद भी अंग्रेजी के गुलामी का शर्मनाक कलंक भारत के माथे में लगाने की राष्ट्रद्रोही कृत्य कर रहा है।  
ऐसा ही शर्मनाक कृत्य प्रधानमंत्री कार्यालय ने ‘दे
 से अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्ति व भारतीय भाषाओं का लागू करने’ की मांग को लेकर संसद की चैखट -राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर 21 अप्रैल 2013 से भाशा पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व महासचिव देवसिंह रावत के नेतृत्व में अखण्ड धरना दे रहे भारतीय भाषा आंदोलन के 30 मई 2014 को प्रधानमंत्री मोदी को दिये गये भारतीय भाशा हिन्दी में लिखे इस आशय के ज्ञापन के उत्तर में किया। 
भाषा आंदोलन के महासचिव देवसिंह रावत ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय के सेक्सन अधिकारी सुधांसु शेखर मिश्रा के हस्ताक्षरित अंग्रेजी में लिखा पावती पत्र 24 जून 2014 को जंतर मंतर धरना स्थल पर भाषा आंदोलन के धरना प्रभारी महेशकांत पाठक को मिला। यह पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय ने 
SECRETARY, D/O PERSONNEL& TRAINING, M/O PERS.P.G.&PENSIONS  dks PMOID NO.1/3/2014-PMP2/47890 DATED 16-06-2014 से भेजा व इसकी एक प्रति .
 ैीSh- BALDEV VANSHI& OTHERS
BHARTIYA BHASHA
 AANDOLAN, DHARNA STHAL,
JANTAR MANTAR. DELHI-01 
को भेजी। यह प्रति मिलने पर भारतीय भाषा आंदोलन में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा भारतीय भाषाओं के इस अपमान की कडी भत्र्सना की गयी। भाशा आंदोलन के महासचिव की अध्यक्षता में हुई आपात बैठक में भारतीय भाषा आंदोलन के धरना प्रभारी महेशकांत पाठक, वरिष्ठ साहित्यकार व संत प्रमुख वीरेन्द्रनाथ वाजपेयी, वरिश्ठ समाजसेवी ताराचंद गौतम, जाट समाज के वरिष्ठ नेता सहदेव पुनिया, अनंतकांत मिश्र, कमल किशोर नौटियाल, मन्नु कुमार, श्रीकृष्ण तिवारी, रमाषकर औझा, चैधरी अजित त्यागी, मोहम्मद सैफी व मोहम्मद आजाद सहित प्रमुख लोग उपस्थित थे। बैठक में इस बात पर गहरा क्षोभ प्रकट किया गया कि एक तरफ प्रधानमंत्री देश विदेश में अंग्रेजी की गुलामी को न ढोते हुए भारतीय भाषा में भारत का सम्मान बढ़ा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उनकी नाक के नीचे उनका प्रधानमंत्री कार्यालय ही भारतीय भाषाओं के सम्मान के लिए भारतीय भाषा में लिखे गये पत्र का जवाब ही अंग्रेजी में दे कर प्रधानमंत्री के आदर्शो का निर्मम हत्या कर रहा है और देश की आजादी, स्वाभिमान व लोकशाही का घोर अपमान कर रहा है। 
भाषा आंदोलन के महासचिव देवसिंह रावत ने क्षोभ प्रकट किया कि जिस आंदोलन में ज्ञानी जैलसिंह, अटल बिहारी वाजपेयी व विष्वनाथ प्रताप सिंह सहित दर्जनों षीर्ष नेताओं ने भाग लिया हो उस आंदोलन का अपमान देश के हुक्मरान व नौकरशाह देश में अंग्रेजी को बनाये रख कर कर रहे है। श्री रावत ने कहा कि जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी व उनके गृहमंत्री राजकाज व बोल चाल में भारतीय भाषा का प्राथमिकता देने की बात कह रहे हैं, उसका प्रभाव नौकरशाही पर रत्तीभर नहीं है इसका जीता जागता सबूत भाषा आंदोलन को प्रेषित प्रधानमंत्री कार्यालय यह पत्र है। भाषा आंदोलन को आशा थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय मोदी के शासन में आने से सुधर गया होगा परन्तु जिस प्रकार का पत्र भाषा आंदोलन को भेजा गया उससे साफ हो गया है कि मनमोहन सिंह के बदलने के बाद मोदी के आने पर भी प्रधानमंत्री कार्यालय मोदी के राश्ट्रवाद को ठेगा बताने के लिए अंग्रेजी की गुलामी को किसी भी कीमत पर नहीं छोडना चाहता है। यही नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय को जो ज्ञापन भाषा आंदोलन ने दिया उसको किस सम्बंध विभाग को भेजना है इसका भी भान तक नहीं है।  इससे पहले मनमोहनी सरकार में भी प्रधानमंत्री कार्यालय इसी प्रकार की गुलाम परस्ती भाषा आंदोलन को प्रेषित अपने पत्रों में करता रहा। अंतर इतना है मनमोहन के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय ने भाषा आंदोलन के इसी आशय के ज्ञापन को कार्यवाही के लिए दिल्ली पुलिस कमिशनर को प्रेषित किया तो कभी खान मंत्रालय को, अब मोदी के कार्यकाल में इसे पेंशन व टेªेनिग विभाग को अग्रमी कार्यवाही के लिए प्रेषित किया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय के इस अदने से पत्र से साफ हो गया कि निजाम भले बदल भी जाय परन्तु देश की नौकरशाही किसी भी कीमत पर अंग्रेजी की गुलामी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे गुलामों पर कैसे अंकुश लगाया जाय यह फेसला प्रधानमंत्री मोदी ने करना है।